09मई 2025 रायपुर: पत्थलगांव जनपद पंचायत के सीईओ वीरेंद्र कुमार राठौर समेत 4 अधिकारियों, बी.एस. राज, भरोसा राम ठाकुर, और राधेश्याम मिर्जा को EOW ने 9 मई 2025 को रायपुर में जिला खनिज निधि (DMF) घोटाले में गिरफ्तार किया। यह घोटाला फर्जी बिलों, निविदा हेरफेर, और ठेकेदारों के साथ मिलीभगत से सरकारी धन के गबन से जुड़ा है, जिसकी राशि 90.35 करोड़ रुपये तक पहुंचती है। ED और EOW की संयुक्त कार्रवाई से 21.47 करोड़ रुपये की संपत्तियां कुर्क की गई हैं, और जांच अभी जारी है।
EOW ने 9 मई 2025 को रायपुर में चार अधिकारियों—वीरेंद्र कुमार राठौर (जनपद सीईओ, पत्थलगांव), बी.एस. राज, भरोसा राम ठाकुर (नोडल अधिकारी), और राधेश्याम मिर्जा को जिला खनिज निधि (DMF) घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किया। यह घोटाला छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में DMF के तहत ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी धन के गबन से संबंधित है।
1. DMF का उद्देश्य: जिला खनिज निधि का गठन खनन प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए किया जाता है, जैसे कि स्कूल, अस्पताल, और बुनियादी ढांचे का निर्माण। रायगढ़ जैसे खनन-प्रधान जिले में DMF के तहत भारी राशि आवंटित की जाती है।
2. घोटाले की प्रकृति:
– अधिकारियों और ठेकेदारों ने मिलकर फर्जी बिल, फर्जी कार्य आदेश, और गैर-मौजूद परियोजनाओं के नाम पर DMF की राशि का दुरुपयोग किया।
– ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए निविदा प्रक्रिया में हेरफेर किया गया।
– रिश्वत के रूप में नकद और संपत्तियों का लेन-देन हुआ, जिसे बाद में मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए छिपाया गया।
3. राशि का दायरा: प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच के अनुसार, इस घोटाले में 90.35 करोड़ रुपये की अपराध आय की पहचान की गई है, जिसमें से 21.47 करोड़ रुपये की संपत्तियां कुर्क की गई हैं।
गिरफ्तारी का कारण
EOW की कार्रवाई निम्नलिखित कारणों से हुई:
– ED की पूर्व कार्रवाई: दिसंबर 2024 में ED ने रायगढ़ में DMF घोटाले की जांच के दौरान 21.47 करोड़ रुपये की संपत्तियां कुर्क की थीं, जिनमें इन चारों अधिकारियों की संपत्तियां शामिल थीं। ED की जांच में इनके खिलाफ ठोस सबूत मिले, जैसे कि बेहिसाब नकदी, आभूषण, और संदिग्ध बैंक लेन-देन।
– पुलिस की FIR: छत्तीसगढ़ पुलिस ने तीन अलग-अलग FIR दर्ज की थीं, जिनमें ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप था। EOW ने इन FIR के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया।
– पूछताछ और सबूत: EOW ने रायगढ़ और रायपुर में कई ठिकानों पर छापेमारी की, जहां फर्जी दस्तावेज, बिल, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए गए। पूछताछ में इन अधिकारियों की मिलीभगत और रिश्वतखोरी की पुष्टि हुई।
– संपत्तियों का खुलासा: ED ने पाया कि इन अधिकारियों ने अवैध कमाई से जमीन, आवासीय संपत्तियां, और बैंक जमा राशि अर्जित की थी, जो उनकी आय से असंगत थी।
शामिल व्यक्ति और उनकी भूमिका
1. वीरेंद्र कुमार राठौर: जनपद सीईओ, पत्थलगांव। कथित तौर पर फर्जी निविदाओं को मंजूरी देने और ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने में शामिल।
2. बी.एस. राज: DMF परियोजनाओं के लिए फर्जी बिलों को मंजूरी देने और रिश्वत लेने का आरोप।
3. भरोसा राम ठाकुर: नोडल अधिकारी। DMF के तहत परियोजनाओं की निगरानी में लापरवाही और फर्जी दस्तावेजों को सत्यापित करने में संलिप्त।
4. राधेश्याम मिर्जा: जनपद सीईओ। ठेकेदारों के साथ मिलकर सरकारी धन का गबन करने और अवैध संपत्ति अर्जित करने का आरोप।
इनके अलावा, ED ने IAS रानू साहू, माया वारियर (महिला एवं बाल विकास विभाग अधिकारी), और अन्य ठेकेदारों जैसे मनोज कुमार द्विवेदी, ऋषभ सोनी, और राकेश कुमार शुक्ला को भी इस घोटाले में शामिल पाया।
जांच और कानूनी प्रक्रिया
– ED की भूमिका: ED ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत जांच शुरू की और दिसंबर 2024 में 16 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया। रानू साहू और माया वारियर की न्यायिक हिरासत 17 दिसंबर 2024 तक बढ़ा दी गई थी।
– EOW की कार्रवाई: EOW ने 9 मई 2025 को इन चारों को गिरफ्तार किया और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) और IPC की धाराओं (420, 467, 468, 471) के तहत मामला दर्ज किया। गिरफ्तार अधिकारियों से गहन पूछताछ जारी है।
– संपत्ति कुर्की: ED ने इन अधिकारियों की जमीन, आवास, और बैंक जमा सहित 21.47 करोड़ रुपये की संपत्तियां कुर्क की हैं।
– अन्य संदिग्ध: जांच में और भी अधिकारियों और ठेकेदारों की संलिप्तता की आशंका है, जिसके लिए EOW और ED संयुक्त रूप से काम कर रही हैं।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
– DMF घोटाले का इतिहास: छत्तीसगढ़ में DMF घोटाला 2023 से जांच के दायरे में है, जब पहली बार अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई थीं। ED और EOW ने 2024 में अपनी जांच तेज की, जिसके परिणामस्वरूप कई हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारियां हुईं।
– राजनीतिक प्रतिक्रिया: विपक्षी नेता चरणदास महंत ने इस मामले को विधानसभा में उठाया था और केंद्रीय जांच की मांग की थी। सत्तारूढ़ BJP सरकार ने इस कार्रवाई को अपनी “भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस” नीति का हिस्सा बताया है।