छत्तीसगढ़: जियो की लापरवाही से छत्तीसगढ़ के इस जिले के युवक को मिला क्रिकेटर रजत पाटीदार का नंबर, साइबर सेल ने कराया सिम सरेंडर…..
छत्तीसगढ़ के इस जिले का है मामला.....

छत्तीसगढ़ 09 अगस्त 2025: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के देवभोग थाना क्षेत्र के माडागांव में रहने वाले एक साधारण किसान परिवार के युवा बीसी के साथ एक हैरान करने वाला वाक्या सामने आया है। जियो सर्विस की एक बड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण मनीष को भारतीय क्रिकेटरों में सेंध लगाने वाले क्रिकेटर का मोबाइल नंबर मिला, जिसके बाद उनके करीबी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के नाम से कॉल्स आने शुरू हो गए। इस मामले में मध्य प्रदेश साइबर सेल और देवभोग पुलिस की तत्काल कार्रवाई के बाद सिम को सरेंडर किया गया था, लेकिन यह घटना आइडिया की कंपनी लाचर प्रक्रिया पर सवाल उठाती है।
पूरा मामला क्या है?
माडागांव निवासी गजेंद्र बीसी के 21 वर्षीय पुत्र मनीष बीसी ने 28 जून 2025 को देवभोग के बीसी मोबाइल सेंटर से जियो का एक नया सिम (नंबर: 81032***00) खरीदा। मोबाइल सेंटर के संचालक शिशुपाल ने सामान्य प्रक्रिया के तहत यह सिम मनीष को जारी कर दिया। सिम सक्रिय होने के बाद मनीष ने अपने दोस्त खेमराज के साथ मिलकर इस नंबर पर व्हाट्सएप इंस्टॉल किया। लेकिन व्हाट्सएप इंस्टॉल करते ही उन्हें डीपी (डिस्प्ले पिक्चर) में भारतीय क्रिकेटर रजत पाटीदार की तस्वीर दिखाई दी। मनीष और उनके दोस्त ने इसे किसी सॉफ्टवेयर ग्लिच या मजाक समझा और ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
हालांकि, दो दिन बाद मनीष के इस नंबर पर अजीबोगरीब कॉल्स आने शुरू हो गए। कॉल करने वालों ने खुद को मशहूर क्रिकेटर विराट कोहली, यश दयाल और यहां तक कि साउथ अफ्रीका के दिग्गज खिलाड़ी एबी डिविलियर्स बताया। इन कॉल्स से हैरान मनीष ने मामले की जानकारी अपने परिवार और स्थानीय पुलिस को दी।
देवभोग पुलिस और साइबर सेल की कार्रवा
देवभोग थाना प्रभारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत जांच शुरू की। जांच में पता चला कि यह नंबर पहले भारतीय क्रिकेटर रजत पाटीदार के नाम पर रजिस्टर्ड था, जो किसी कारणवश पिछले 90 दिनों से निष्क्रिय था। मध्य प्रदेश साइबर सेल की एक टीम ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और मनीष के पिता गजेंद्र बीसी से संपर्क किया। साइबर सेल ने गजेंद्र से अनुरोध किया कि इस सिम को सरेंडर कर दिया जाए, ताकि इसे रजत पाटीदार को वापस भेजा जा सके। गजेंद्र ने सहमति जताते हुए सिम को देवभोग पुलिस को सौंप दिया। पुलिस ने औपचारिकताएं पूरी कर सिम को रजत पाटीदार के पते पर भिजवा दिया। थाना प्रभारी ने बताया कि यह पूरा मामला जियो की सिम आवंटन प्रक्रिया में लापरवाही के कारण हुआ।
जियो की लापरवाही पर उठे सवाल
यह घटना जियो की सिम आवंटन प्रक्रिया में गंभीर खामियों को उजागर करती है। टेलीकॉम नियमों के अनुसार, कोई भी नंबर निष्क्रिय होने के बाद एक निश्चित अवधि तक रिजर्व रखा जाता है, ताकि मूल उपयोगकर्ता उसे पुनः सक्रिय कर सके। लेकिन इस मामले में, रजत पाटीदार का नंबर, जो केवल 90 दिनों से निष्क्रिय था, बिना किसी सत्यापन के मनीष को आवंटित कर दिया गया। यह न केवल गोपनीयता का उल्लंघन है, बल्कि साइबर सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ऐसे नंबर बिना उचित जांच के दोबारा आवंटित किए जाते हैं, तो इससे साइबर ठगी, पहचान की चोरी और अन्य आपराधिक गतिविधियों का खतरा बढ़ सकता है। इस मामले में मनीष और उनके परिवार ने समय रहते पुलिस को सूचित कर सही कदम उठाया, लेकिन अगर यह नंबर किसी गलत व्यक्ति के हाथों में चला जाता, तो स्थिति और गंभीर हो सकती थी।
स्थानीय लोगों में चर्चा का विषय
माडागांव और देवभोग क्षेत्र में यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि टेलीकॉम कंपनियों को ऐसी लापरवाही से बचना चाहिए, ताकि आम लोगों को अनावश्यक परेशानी न झेलनी पड़े। मनीष ने बताया कि यह उनके लिए एक अजीब अनुभव था, जब उन्हें मशहूर क्रिकेटरों के नाम से कॉल्स आए। उन्होंने कहा, “मैं तो बस एक सामान्य सिम लेना चाहता था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि यह इतना बड़ा मामला बन जाएगा।”
जियो की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं
इस मामले में जियो की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। यह पूछे जाने पर कि ऐसी गलती कैसे हुई और भविष्य में इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाएं, कंपनी ने कोई जवाब नहीं दिया। स्थानीय पुलिस ने जियो से इस संबंध में भी पूछताछ की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है।
साइबर सुरक्षा प्रश्न
यह इवेंट एक बार फिर से साइबर सिक्योरिटी और सोसाइटी सोसायटी पर सवाल उठाया गया है। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, जहां लोग तकनीकी पाइपलाइन से पूरी तरह से कोई विश्वसनीयता नहीं होती है, ऐसे गंभीर परिणामों को बढ़ावा दिया जा सकता है। मध्य प्रदेश साइबर सेल ने इस मामले को तुरंत कार्रवाई के लिए ले लिया है, लेकिन यह सवाल यह बना है कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए वॉकआउट क्या उपाय करें।
मनीष बीसी का ये एक्सपीरियंस वेल ही अब खत्म हो चुका है, लेकिन ये इवेंट टार्क क्षेत्र में मजबूती और मजबूती की आवश्यकता को जोड़ता है। जियो जैसी बड़ी कंपनी से ऐसी विफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती, और यह आम लोगों के बीच विश्वास को प्रभावित कर सकती है। प्रशासन और साइबर सेल की तत्काल कार्रवाई ने इस मामले को और जटिल होने से बचा लिया, लेकिन भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए टेलीकॉम कंपनी को अपनी पढ़ाई को और मजबूत करना होगा।